3/29/2024

पूर्वांचल का मसीहा या यूपी का माफिया? क्या है जरायम और राजनीति के मुख्तार की पूरी कहानी....

पूर्वांचल का मसीहा या यूपी का माफिया? क्या है जरायम और राजनीति के मुख्तार की पूरी कहानी....

सरफराज अहमद
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उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र और वहां का सबसे बड़ा नाम मुख्तार अंसारी, जो 80 से लेकर 90 के दशक और फिर 2000 के शुरुआती सालों में मीडिया की सुर्खियों में छाया रहा. हालांकि बाद के सालों में उसके नाम के साथ खबरों की चमक भी धुंधली होती गई. लेकिन 28 मार्च की रात न्यूज चैनलों पर मुख्तार अंसारी एक बार फिर नए सिरे से सुर्खियों में था. दो दिन पहले ही उसकी तबीयत बिगड़ी थी.

पेट में दर्द और उल्टी की शिकायत के बाद उसे बांदा के रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज लाया गया था. 14 घंटे अस्पताल में इलाज चला और उसे 27 मार्च को दोबारा जेल भेज दिया गया. लेकिन अगले ही दिन यानी 28 मार्च को मुख्तार की तबीयत फिर बिगड़ी और नाजुक स्थिति में उसे फिर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. लेकिन इस बार वह दोबारा लौट कर बांदा जेल न जा सका.

खबर आई कि हार्ट अटैक की वजह से मुख्तार अंसारी की मौत हो गई. एक पेज पर मेडिकल बुलेटिन की हेडिंग के साथ यही कोई 5 लाइन में ऐलान हुआ कि मुख्तार अंसारी की मौत हो गई है. ये उस माफिया की मृत्यु का ऐलाननामा था जिसके आतंक की कहानी 500 पन्नों में भी दर्ज ना हो पाए.

किसी के लिए वह पूर्वांचल का सबसे 'बड़ा माफिया डॉन मुख्तार' था, तो किसी के लिए 'गरीबों-मजलूमों का मसीहा मुख्तार.' किसी के लिए 5 बार का विधायक तो किसी के लिए सत्ता की मार झेल रहा 'बेचारा मुख्तार.' कौन था मुख्तार अंसारी? कहां तक पसरा है उसके आतंक का किला? जिसके दादा स्वतंत्रता सेनानी थे, गांधी के अनुयायी थे, जिसके नाना सेना में ब्रिगेडियर थे, जिसके चाचा भारत के उपराष्ट्रपति थे. लेकिन मुख्तार के साथ आई पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया की ख्याति. क्यों और कैसे? 

पूर्वी यूपी में जमीन और तालाबों के अवैध कब्जे के खिलाफ लड़ रहे मऊ के सामाजिक कार्यकर्ता छोटेलाल गांधी कहते हैं, "अपने आपराधिक काम को बचाने के लिए मुख्तार ने साल 1995 से मऊ विधानसभा सीट पर राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी थी. इस सीट पर मुसलमानों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा थी और उनका समर्थन मुख्तार को था." 

मुख्तार अंसारी ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 1996 में मऊ से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता. इसी सीट से वह लगातार पांच बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहा. हालांकि अपनी पहली जीत के बाद से ही उसके रास्ते बसपा से अलग हो गए. साल 2002 और 2007 में उसने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की. 

छोटे लाल के मुताबिक, मुख्तार अंसारी ने मऊ और गाजीपुर में 'रॉबिनहुड' की तरह अपनी छवि बनाई जो बड़े सरकारी ठेकों में अपना आधिपत्य स्थापित कर गरीबों की मदद करता था. इस रणनीति से मुख्तार के समर्थकों की संख्या बढ़ती चली गई.

2002 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी पूर्वी यूपी के तत्कालीन प्रमुख भाजपा नेता कृष्णानंद राय से मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से हार गए थे. इसमें कृष्णानंद राय को माफिया बृजेश सिंह का भी साथ मिला. इस चुनाव के बाद गाजीपुर और मऊ में हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होने लगा. वर्ष 2005 में जब मऊ में दंगे हुए थे तब मुख्तार अंसारी खुली जीप में घूम रहा था.

अक्टूबर 2005 में मुख्तार को दंगा करने के आरोप में जेल जाना पड़ा था. तब से वह जेल में ही था. वर्ष 2008 में मुख्तार अंसारी बसपा में शामिल हो गया. 2009 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मुख्तार को 'गरीबों का मसीहा' बताया और कहा कि उन्हें आपराधिक मामलों में झूठा फंसाया गया है.

2009 के लोकसभा चुनाव में, मुख्तार जेल में रहते हुए वाराणसी सीट से उम्मीदवार बना रहा लेकिन भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से हार गया. 2010 में, मायावती ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकार किया और उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया.

अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ मिलकर 'कौमी एकता दल' नाम से एक नई पार्टी बनाई. इसी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर 2012 में मुख्तार एक बार फिर मऊ विधानसभा सीट से चुनाव जीता. 2014 में, मुख्तार ने ऐलान किया कि वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसद सीट से चुनाव लड़ेगा. लेकिन बाद में यह कहते हुए निर्णय वापस ले लिया कि यह सांप्रदायिकता के आधार पर वोटों को विभाजित करेगा.

वर्ष 2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका कड़ा विरोध किया. तमाम कोशिशों के बाद भी अखिलेश यादव मुख्तार को सपा में शामिल करने के लिए राजी नहीं हुए. 

लेकिन वो दुनिया सियासी नहीं थी जिसने मुख्तार को मुख्तार बनाया. वो जरायम की दुनिया थी, जिसमें मुख्तार दाखिल हुआ तो पूर्वांचल का माफिया बन गया. अस्सी के दशक से ही मुख्तार की चहलकदमी अपराधियों के साथ शुरू हो गई थी. इसी दौरान वह मऊ-गाजीपुर के इलाके में सक्रिय मखनु सिंह गैंग के संपर्क में आ गया था.
 
साल 1978 में मुख्तार के खिलाफ पहली बार मुकदमा दर्ज हुआ. आईपीसी की धारा 506 के तहत धमकी देने का मामला दर्ज किया गया. इस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 15 साल थी. किसे मालूम था कि 15 बरस की उम्र में पहली बार जिस बच्चे पर केस लिखा गया है वह आगे चलकर ऐसे कांड करेगा कि 15 बरस तक जेल की सलाखों के पीछे रहेगा.

इसके बाद मुख्तार छुटपुट घटनाओं में शामिल तो रहा लेकिन कोई बड़ा मामला नहीं बना. कैलेंडर पर एक के बाद एक 10 बरस बीते, साल आया 1988 और तारीख 25 अक्टूबर. आजमगढ़ के ढकवा के संजय प्रकाश उर्फ मुन्ना सिंह ने मुख्तार अंसारी के खिलाफ हत्या की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया. मुख्तार के खिलाफ इस तरह का ये पहला ही मामला था. अगस्त, 2007 में मुख्तार को इस मामले में दोषमुक्त कर दिया गया.

इंडिया टुडे के रिपोर्टर आशीष मिश्र बताते हैं, "1990 के दशक में मुख्तार अंसारी ने खुद अपना गैंग बना लिया. उसने कोयला खनन और रेलवे के काम में ठेकेदारी करके पूंजी तैयार की और इसके बाद तो अपराध की दुनिया का कोई भी काम उसके लिए पैर के अंगूठे बराबर ही रह गया. 

गुंडा टैक्स, जबरन वसूली, धमकी, अपहरण और हत्या तक के मामलों में उसकी एंट्री हो गई. इस दौरान पूर्वांचल में उस वक्त ब्रजेश सिंह का गैंग भी सक्रिय था. जाहिर है इन दोनों में ठेकेदारी को लेकर शुरू हुई अदावत खूनी रंजिश में बदल गई. गाजीपुर के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश का कब्जा होने लगा. ब्रजेश ने मुख्तार पर हमले भी कराए."

मुख्तार की हिस्ट्रीशीट में यूं तो कई मामले हैं. लेकिन जब भी उसकी कहानी कही जाएगी, दो वारदातों का जिक्र जरूर होगा. साल था 1991 और महीना था अगस्त का, जब अजय राय ने बनारस के चेतगंज थाने में अपने भाई की हत्या का मुकदमा दर्ज करवाया. आरोप लगे मुख्तार अंसारी पर. 

3 अगस्त, 1991 की ही रात कांग्रेस नेता अवधेश राय और अजय राय एक साथ घर के बाहर खड़े थे. इसी दौरान अचानक एक वैन उनके सामने रुकी. वैन से कुछ हथियारबंद लोग बाहर निकले. फिर क्या था, शुरू हुई ताबड़तोड़ फायरिंग. फायरिंग में अवधेश राय मारे गए. अजय राय बच निकले और सीधे थाने पहुंच गए. इस मामले में मुख्तार को उम्र कैद की सजा हुई. इस अदावत की वजह भी पूर्वांचल में वर्चस्व की लड़ाई ही थी.

दूसरा मामला, कृष्णानंद राय हत्याकांड. 2005 की इस कहानी की शुरुआत होती है 2002 से. सूबे में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. गाजीपुर में एक सीट है मोहम्मदाबाद. इसे मुख्तार का गढ़ कहा जाता था. लेकिन 2002 के चुनाव में कृष्णानंद राय ने बीजेपी की टिकट पर इस सीट पर बड़ी जीत हासिल की. राय की जीत बड़ी नहीं थी. बल्कि यहां मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी की हार बड़ी थी. 

इसके बाद यहीं से शुरू हुई दोनों के बीच अदावत. वक्त के साथ दुश्मनी गहरी होती चली गई. अब कैलेंडर पर साल है 2005. यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स ने राय को चेतावनी दी कि उनकी जान को खतरा है. लेकिन राय तो ठहरे दबंग नेता, उन्होंने इसे तवज्जो नहीं दी. नवंबर का महीना था और राय एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. तभी गाजीपुर के बसनियां गांव में उनके काफिले को चारों तरफ से हथियारों से लैस गुंडों ने घेर लिया. 

एके-47 की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज उठा. इस फायरिंग में कृष्णानंद राय राय समेत 7 लोगों की मौत हो गई. आरोप लगा मुख्तार के गैंग पर. दिलचस्प बात ये कि तब मुख्तार जेल में था. बीते बरस यानी 2023 में मुख्तार अंसारी को इस मामले में 10 साल जेल की सजा और 5 लाख रुपए का जुर्माना लगा.

1988 से अपराध की दुनिया में नाम, 60 से ज्यादा मुकदमें, लेकिन ये बात अपने आप में हैरान करने वाली है कि मुख्तार अंसारी को पहली बार किसी क्रिमिनल केस में सजा 2022 में जाकर हुई. इसकी कहानी भी अपने आप में बड़ी रोचक है.

मुख्तार अंसारी मऊ सदर से निर्दलीय विधायक बन चुका था, लेकिन 2003 में दिल्ली जेल में बंद था. विधानसभा सत्र शुरू हुआ तो लखनऊ शिफ्ट किया गया. उस समय लखनऊ जेल में जेलर थे एस के अवस्थी. 23 अप्रैल, 2003 का वाकया है, मुख्तार अंसारी से मिलने कुछ लोग सुबह साढ़े दस बजे जेल पहुंचे.

जेलर एस के अवस्थी उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, "मैं लखनऊ जेल में अपने कार्यालय में बैठा था. मुख्तार अंसारी मेरे कार्यालय में आया और उससे मिलने आए लोगों को बिना तलाशी भीतर करने को कहा, तब तक ये लोग अंदर आ चुके थे. मैंने तलाशी का आदेश दिया तो मुख्तार बौखला गया. मिलने आए एक व्यक्ति के पास से रिवॉल्वर लेकर मेरे ऊपर तान दी. वह गाली-गलौज करते हुए बोला, तुम जेल से बाहर आओ मैं तुम्हे मार डालूंगा."

अवस्थी ने अधिकारियों को घटना की जानकारी दी. वे मुख्तार के खिलाफ FIR दर्ज कराने पर अड़ गए, इसी दौरान कई अधीकारी उनसे ऐसा न करने का दबाव डाल रहे थे. सभी दबावों से निपटते हुए अवस्थी कामयाब हुए और अगले दिन 24 अप्रैल, 2003 को लखनऊ के आलमबाग थाने में एफआईआर दर्ज हुई. दो महीने के भीतर मुख्तार पर आरोप तय हुए, लेकिन फिर कोर्ट में ये मामला ठंडे बस्ते में ही बना रहा. 

समय बीतता गया और अवस्थी साल 2013 में रिटायर हो गए. उनके रिटायरमेंट के बाद मुख्तार ने 2014 में लखनऊ अपर डिस्ट्रिक्ट जज (ADJ) कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर जेलर एस. के. अवस्थी से दोबारा जिरह कराने की मांग की. अब रिटायरमेंट के करीब आठ महीने गुजरने के बाद अवस्थी 10 साल पहले के अपने मूल बयान पर कायम न रह सके. 2020 में एडीजे कोर्ट ने मुख्तार को इस मुकदमे में बरी कर दिया और यूपी सरकार की बड़ी किरकिरी हुई. 

लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस मामले को इतनी जल्दी हाथ से निकलने नहीं दिया. एडीजे कोर्ट के निर्णय के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील करने और उन कारणों की पड़ताल करने का निर्देश दिया जिनकी वजह से यूपी सरकार का पक्ष कमजोर पड़ था.  

इसके बाद सरकार ने काबिल लोगों की एक नई टीम बनाई और हाइकोर्ट में सरकार की तरफ से दलीलें देनी शुरू की. 21 सितंबर 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जेलर को धमकाने के मामले में मुख्तार को दोषी करार दिया. सात साल की सजा सुनाई और 37 हजार रुपये जुर्माना लगाया. ये पहली बार हुआ कि मुख्तार को किसी आपराधिक मामले में दोषी करार दिया गया था. 

इसमें एक नजर उस टीम पर भी डाल लेते हैं तो मुख्तार को सजा दिलाने में कामयाब रही. इसमें पहला नाम अवनीश अवस्थी का है. ये CM योगी आदित्यनाथ के सलाहकार हैं. दूसरे संजय प्रसाद, ये मुख्यमंत्री कार्यकाल के प्रमुख सचिव हैं. तीसरे आनंद कुमार, इन्हें DG जेल के रूप में उत्तरप्रदेश की जेलों में बदलाव का जनक माना जाता है. चौथे प्रशांत कुमार, ये यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर हैं. पांचवे हैं आशुतोष पांडेय ये एडीजी प्रॉसीक्यूशन हैं और इनके नेतृत्व में पहली बार अभियोजन विभाग पेपरलेस हुआ. छठे हैं अमिताभ यश, इन्होंने एडीजी एसटीएफ के रूप में मुख्तार के गुर्गों की धरपकड़ का अभियान चलाया.

इतना सबकुछ जानने के बाद ये सवाल उठना वाजिब है कि मुख्तार का फुलप्रूफ प्लान क्या था. दरअसल इसका कोई एक या दो नहीं बल्कि एक दर्जन तरीके थे. इसमें एक- एक आपको बताएं तो रॉबिन हुड की छवि बनाना, शूटर्स की फौज खड़ी करना, ठेकों पर कब्जा करना, जमीन पर अवैध कब्जे, जेल से नेटवर्क चलाना, बैरक हाईजैक करना, रिश्वत का जाल फैलाना, विश्वसनीय कैदी चुनना, मुखबिर सिस्टम बनाना, मेडकल रिपोर्ट में फर्जीवाड़ा, न्याय वयवस्था की कमियों का फायदा उठाना, वकीलों पर दबाव डालना और गवाह तोड़ने जैसे हथकंडे शामिल हैं. 

मुख्तार की हनक पूरे यूपी में ऐसी रही कि एक अधिकारी को इस्तीफा तक देना पड़ गया. यूपी प्रांतीय पुलिस सेवा (PPS) के 1989 बैच के पूर्व अधिकारी थे शैंलेंद्र सिंह. ये जनवरी, 2004 में एसटीएफ के पद पर लखनऊ थे. मुखबिरों से सूचना मिली कि सेना का एक भगोड़ा लाइट मशीन गन लेकर भागा है और उसे मुख्तार अंसारी को बेचने की में तैयारी है. 

शैलेंद्र ने भगोड़े को पकड़ कर एलएमजी (लाइट मशीनगन) बरामद कर ली, लेकिन दावा ये था कि LMG मुख्तार अंसारी के पास से बरामद हुई थी. इसी आरोप के चलते मुख्तार अंसारी के खिलाफ 'पोटा' (प्रिवेंशन ऑफ टेरिरिज्म ऐक्ट, 2002) के तहत मामला दर्ज कराया गया. इस कार्रवाई के बाद शैलेंद्र मुलायम सरकार के निशाने पर आ गए क्योंकि विधायक के तौर पर मुख्तार सपा को समर्थन कर रहा था. सरकार के दबाव में आकर शैलेंद्र ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.  

मामला मुख्तार अंसारी से शुरू होकर मुख्तार अंसारी पर ही खत्म नहीं होता. बल्कि पूरा परिवार ही अब कानून के शिकंजे में है. मुख्तार की पत्नी आफसा अंसारी 54 साल की हैं. उनपर गाजीपुर की शहर कोतवाली और थाना नंदगंज में कुल मिलाकर 6 मुकदमे दर्ज हैं. इनमें गैंगेस्टर एक्ट, आपराधिक षड़यंत्र और चोरी जैसे कई मामले हैं. आफसा के भाई और मुख्तार के साले सरजील रजा और अनवर शहजाद पर गाजीपुर की शहर कोतवाली में गैंगेस्टर एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज है. 
                              
मुख्तार अंसारी का बड़ा बेटा अब्बास अंसारी मऊ सदर विधानसभा सीट से विधायक है. अब्बास पर मऊ में 3 मुकदमे दर्ज हैं. लखनऊ के महानगर थाने में 2 मुकदमे हैं. गाजीपुर की शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज है. विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्तार अंसारी पर 'हेट स्पीच' का मुकदमा भी दर्ज हुआ था. 

मुख्तार अंसारी के छोटे बेटे उमर अंसारी पर लखनऊ के महानगर थाने में 2 मुकदमे दर्ज हैं. मऊ जिले की शहर कोतवाली में चुनाव में भी 2 मुकदमे हैं. इसके अलावा गाजीपुर की शहर कोतवाली में भी केस चल रहा है. मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और गाजीपुर से बसपा सांसद अफजाल अंसारी के ऊपर भी गाजीपुर के थाने में 6 मुकदमे हैं. हालांकि अब मुख्तार के अंत के बाद यह उम्मीद भी की जा रही है कि इन आपराधिक मुकदमों का अंत भी जल्द ही होगा.

एक नजर इधर भी...

करीब दो दशक पहले की बात है. एक बार एक विधवा औरत अपने बेटी के शादी के लिए मुख्तार अंसारी के घर जिसको फाटक कहा जाता है, वहां पहुंची. मुख्तार अंसारी की निगाह गेट पर खड़ी उस औरत पर पड़ी. मुख्तार ने उन्हे बुलाया और पूछा क्या परेशानी है. उन्होने बताया हमारी बेटी की शादी की तारीख तय है लेकिन पैसे नही है.मैं एक दिन और आई थी लेकिन कोई दिखा नही और मै चली गई. आज फिर आई हूं.

मुख्तार ने अपने बड़े भाई अफजाल अंसारी को बुलाया और कहां कि कोई कैसे आकर यहां से वापस चला जा रहा है. ...देखिए इनकी बेटी की शादी है , आप पूरा इंतजाम कर दीजिए. अफजाल अंसारी ने पूरी व्यवस्था की और शादी के दिन वहां रहे भी. यह महज एक किस्सा है. ऐसी हजारों कहानियां है मदद की.

मुख्तार अंसारी के परिवार ने इस देश के लिए शहादत दी है. मुख्तार अंसारी के दादा डा.मुख्तार अहमद अंसारी लंदन में डाक्टर थे. गांधीजी और नेहरू जी के कहने पर वहां से आकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. लंदन के जिस हास्पिटल में वह डाक्टर थे वहां के एक वार्ड का नाम आज भी उनके नाम पर है. उनका देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कद इतना बडा़ था कि 1927 के राष्ट्रीय अधिवेशन में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 

मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर उस्मान को देश के बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि आप पाकिस्तान में चले आइए हम आपको पाकिस्तान की सेना का जनरल बना देंगें लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने कहा कि मैं भारत मां का बेटा हूं, यहीं शहीद हो जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान हरगिज नही आऊंगा. ब्रिगेडियर उस्मान के बहादुरी और शहादत के किस्से कौन नही जानता.  जब वह पाकिस्तानी सेना से लड़ते शहीद हुए तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उनकी अर्थी को कंधा दिया था. 

गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के दरवाजे पर  जो भी गरीब इंसान शादी ब्याह, दवा, पढ़ाई के लिए मदद मांगने गया कभी निराश नही हुआ. किसी से जाति, धर्म और मजहब के बारे में नही पूछा गया कभी. सबकी मदद हुई.

मुख्तार अंसारी के ऊपर अपराध के तमाम आरोप थे.न्यायालय को फैसला करने का अधिकार था. लेकिन जिस तरीके जहर देने की खबर तमाम माध्यमों से आम जन मानस में व्याप्त हैं. वह न्यायिक प्रक्रिया के पक्षपात को ऊजागर कर रहा है...

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