पांच जजों की पीठ में सबसे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपना और जस्टिस खानविलकर का फैसला पढ़ा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा, ''मैं जैसा हूँ, उसे वैसा ही स्वीकार किया जाए, आभिव्यक्ति और अपने बारे में फैसले लेने का अधिकार सबको है।''
चीफ जस्टिस ने कहा, ''समय के साथ बदलाव ज़रूरी है, संविधान में बदलाव करने की ज़रूरत इस वजह से भी है जिससे कि समाज मे बदलाव लाया जा सके। नैतिकता का सिद्धांत कई बार बहुमतवाद से प्रभावित होता है लेकिन छोटे तबके को बहुमत के तरीके से जीने को विवश नहीं किया जा सकता।''
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''हर व्यक्ति को गरिमा से जीने का हक है, सेक्सुअल रुझान प्राकृतिक है। इस आधार पर भेद भाव नहीं हो सकता। हर व्यक्ति को गरिमा से जीने का हक है। सेक्सुअल रुझान प्राकृतिक है। इस आधार पर भेद भाव नहीं हो सकतानिजता का अधिकार मौलिक अधिकार है, 377 इसका हनन करता है।''
चीफ जस्टिस ने कहा, ''देश में सबको समानता और सम्मान से जीने का अधिकार सबको हासिल है। कुछ लोग समाज से बहिष्कार की स्थिति झेलते हैं। पहले हुई गलती को सुधारना ज़रूरी है। जो प्राकृतिक है उसको गलत कैसे ठहराया जा सकता है। समाज की सोच बदलने की ज़रूरत है।
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