आधी आबादी फिर हासिए पर !
यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर छला सभी राजनैतिक दलों नें
वाराणसी। यूपी के चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों के वायदों की स्वरलहरिया राजनीतिक गलियारों में गूंजने लगी है। कोई अच्छे दिन तो कोई प्रदेश को विकास के पथ पर ले जाने का दम्भ भर रहा है लेकिन इन सबके बीच आधी आबादी की आवाज नक्कारखाने में 'तूती' की तरह प्रतीत हो रही है। टिकट बंटवारे की बात करें तो सभी राजनीतिक दलों ने आधी आबादी को सिर्फ छलने का ही काम किया है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने व उनके अधिकारों की बात करने वाले राजनीतिक दलों ने जिस तरह से उनकी अनदेखी की है यह आधीआबादी के साथ खुला मजाक ही कहा जायेगा। कुछ महिलानेत्री ऐसी हैं जो वर्षों से अपने क्षेत्र में समाज सेवा कार्य से सिर्फ इसलिए जुडी रही की पार्टी उन्हें तवज्जो देगी लेकिन ऐसी महिला नेत्रियों को दर-किनार कर दिया गया। टिकट नहीं मिलने से ऐसी महिलाएं अपना वजूद एक बार फिर तलाशने को मजबूर हैं।
महिला सशक्तिकरण की वकालत करने वाली भाजपा ने यूपी चुनाव में मात्र 5 प्रतिशत महिला प्रत्याशियों को ही चुनावी रणक्षेत्र में उतारा है। संगठन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली महिला नेत्रियों को परिवारवाद के चलते दरकिनार कर दिया गया। सबसे महत्वपूर्ण पहलु ये है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक भी महिला प्रत्याशी को टिकट न देकर एक मात्र महिला विधायक का टिकट काटकर उनके बेटे को दे दिया गया है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता संभालते ही इस बात की पुरजोर वकालत की थी कि पार्टी में भाई-भतीजा व परिवारवाद को तवज्जो नहीं दी जायेगी। परन्तु परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव आते-आते इसमें उलझ कर रह गयी। ऐसा नहीं की भाजपा में ही महिलाओं की उपेक्षा है बल्कि महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाली अन्य की भी यही स्थिति है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व दलित समाज की मसीहा कहलाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी इससे अछूती नहीं है। समाजवादी पार्टी को भी 33 प्रतिशत भी महिलाओं की भगीदारी किया जाना राष नहीं आया। भीड़ जुटाने की बात होती है तो महिलाओं को आगे किया जाता है मतदान कराना होता है तो सहयोगी बनाया जाता है परंतु जब वाजिब हक देने की बात होती है सभी मुंह फेर लेते है। आखिर आधी आबादी को कब तक राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस्तेमाल किया जायेगा। भाजपा ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने 11 प्रतिशत, समाजवादी पार्टी ने लगभग 9 प्रतिशत व बहुजन समाज पार्टी ने लगभग 5 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी चाही है। इस तरह देश के सबसे बड़े प्रदेश से मात्र 8 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया गया है।
यूपी विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर छला सभी राजनैतिक दलों नें
वाराणसी। यूपी के चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों के वायदों की स्वरलहरिया राजनीतिक गलियारों में गूंजने लगी है। कोई अच्छे दिन तो कोई प्रदेश को विकास के पथ पर ले जाने का दम्भ भर रहा है लेकिन इन सबके बीच आधी आबादी की आवाज नक्कारखाने में 'तूती' की तरह प्रतीत हो रही है। टिकट बंटवारे की बात करें तो सभी राजनीतिक दलों ने आधी आबादी को सिर्फ छलने का ही काम किया है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने व उनके अधिकारों की बात करने वाले राजनीतिक दलों ने जिस तरह से उनकी अनदेखी की है यह आधीआबादी के साथ खुला मजाक ही कहा जायेगा। कुछ महिलानेत्री ऐसी हैं जो वर्षों से अपने क्षेत्र में समाज सेवा कार्य से सिर्फ इसलिए जुडी रही की पार्टी उन्हें तवज्जो देगी लेकिन ऐसी महिला नेत्रियों को दर-किनार कर दिया गया। टिकट नहीं मिलने से ऐसी महिलाएं अपना वजूद एक बार फिर तलाशने को मजबूर हैं।
महिला सशक्तिकरण की वकालत करने वाली भाजपा ने यूपी चुनाव में मात्र 5 प्रतिशत महिला प्रत्याशियों को ही चुनावी रणक्षेत्र में उतारा है। संगठन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली महिला नेत्रियों को परिवारवाद के चलते दरकिनार कर दिया गया। सबसे महत्वपूर्ण पहलु ये है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक भी महिला प्रत्याशी को टिकट न देकर एक मात्र महिला विधायक का टिकट काटकर उनके बेटे को दे दिया गया है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता संभालते ही इस बात की पुरजोर वकालत की थी कि पार्टी में भाई-भतीजा व परिवारवाद को तवज्जो नहीं दी जायेगी। परन्तु परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव आते-आते इसमें उलझ कर रह गयी। ऐसा नहीं की भाजपा में ही महिलाओं की उपेक्षा है बल्कि महिलाओं के नेतृत्व में चलने वाली अन्य की भी यही स्थिति है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व दलित समाज की मसीहा कहलाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी इससे अछूती नहीं है। समाजवादी पार्टी को भी 33 प्रतिशत भी महिलाओं की भगीदारी किया जाना राष नहीं आया। भीड़ जुटाने की बात होती है तो महिलाओं को आगे किया जाता है मतदान कराना होता है तो सहयोगी बनाया जाता है परंतु जब वाजिब हक देने की बात होती है सभी मुंह फेर लेते है। आखिर आधी आबादी को कब तक राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस्तेमाल किया जायेगा। भाजपा ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने 11 प्रतिशत, समाजवादी पार्टी ने लगभग 9 प्रतिशत व बहुजन समाज पार्टी ने लगभग 5 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी चाही है। इस तरह देश के सबसे बड़े प्रदेश से मात्र 8 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया गया है।

Samaj aur rajniti ka darpan
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