विदेशी मेहमानो संग देशी पहरुओं ने सराहा कलाकार के फ़न और हुनर को
उभरते कलाकारों का सशक्त मंच बना "घाट संध्या"
वाराणसी।काशी के मान के प्रतीक गंगा घाट जहां के किनारे पर बैठ कर सुकून का वो ज़खीरा मिलने सा एहसास होता है ।जो जिंदगी की भागदौड़ में खो गया सा लगता है।अगर उस सुकून के एहसास में कुछ देसी मनोरंजन की छौंक लग जाये तो फिर सुधबुध खोना लाज़िमी है ज़नाब।कुछ ऐसा ही नज़ारा आजकल रीवा घाट पर देसी परंपरा की झलक को प्रस्तुत कर रहे कार्यक्रम में देखने को मिल रहा है।जिसका नाम है "घाट संध्या"।
शहर के उभरते कलाकारों को एक मंच उपलब्ध करा उनकी प्रतिभा और मेघा को आमजनमानस के समक्ष लाने का बीड़ा प्रशासन के कुछ जिम्मेदार अफसरों ने अपने कंधो पर लिया है।उसी की कड़ी में सांस्कृतिक समिति वाराणसी द्वारा अयोजित नृत्य, कला और अध्यात्म का संगम "घाट संध्या" के दूसरे दिन रूपा सिंह ने मनोहारी कत्थक नृत्य की प्रस्तुति दी।जिसका आनन्द कलाप्रेमियों ने बखूबी लिया।कत्थक नृत्य का प्रस्तुति आरम्भ गणेश वंदना से तत्पश्चात तराना और अंत ठुमरी से हुआ।ठुमरी के बोल थे " मत रोको रे सांवरियां "।गायन व हारमोनियम पर आनंद किशोर मिश्रा, तबला पर भोलानाथ मिश्रा व बाँसुरी पर शानीश ज्ञवली ने संगत की।बताते चले की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ विधि नागर की शिष्या रूपा सिंह नृत्य विभाग में शोधछात्रा है।
इस दौरान वाराणसी के मुख्य विकास अधिकारी पुलकित खरे, संयुक्त मजिस्ट्रेट ईशा दुहानी, जिला सांस्कृतिक समिति के सचिव डॉ रत्नेश वर्मा के साथ ही बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटकों के साथ स्थानीय लोग भी मौजूद रहे।कार्यक्रम का संचालन अंकिता खत्री ने किया।

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