सरफ़राज़ अहमद
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पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से यूपी के किसानों को साधने की तैयारी में कांग्रेस। 18 जनवरी को आ रहे हैं किसान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नाना पटोले। राजतालाब में होनी है किसान महा पंचायत। इसी बीच काग्रेस विरोधी किसानों ने भी खोल दिया है मोर्चा।
वाराणसी. लोकसभा चुनाव से पहले किसानों और युवाओं को पार्टी से जोड़ने की कवायद में जुटी कांग्रेस, 18 जनवरी को वाराणसी में किसान महापंचायत करने जा रही है। इस महापंचायत में किसानहित के मामले में बीजेपी की सदस्यसता ही नहीं सांसदी तक छोड़ने वाले महाराष्ट्र के किसान नेता नाना पटोले बनारस आ रहे हैं। पटोले इन दिनों कांग्रेस में हैं और राहुल गांधी ने उन्हें किसान कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। अब इस किसान महापंचायत को लेकर बनारस कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है। बहुत दिनों पर बनारस कांग्रेस को चुनौती मिली है कि उसे वाराणसी जो प्रधामनमंत्री का संसदीय क्षेत्र है, बीजेपी का गढ़ जिसे माना जाता है वहां के किसानों को लामबंद कर बडी लकीर खींचनी है। हालांकि इस महापंचायत के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से भी किसान कांग्रेस के नेता वाराणसी पहुंच गए हैं। कुछ तो कई दिनों से काशी में डेरा डाले हैं। लेकिन इसी बीच कुछ कांग्रेस विरोधी किसानों ने भी मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने ऐलान किया है कि वो कांग्रेस के किसान महापंचायत का विरोध करेंगे। ऐसे में बनारस कांग्रेस की चुनौती और भी बडी हो गई है। वजह एक और भी है कि कांग्रेस के बाद अगले महीने बीजेपी भी इस काशी में बड़ा किसान महासम्मेलन करने जा रही है। ऐसे में कांग्रेस को एक बड़ी लकीर खींचना और भी जरूरी है ताकि चुनाव से पहले तस्वीर साफ हो सके।
बता दें कि पहले पंजाब फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता की बागडोर संभालने के बाद काग्रेस का आत्म विश्वास बड़ा है। पिछले साल भर पहले की तस्वीर बदली है। खास तौर पर हिंदी भाषा-भाषी क्षेत्र के राज्यों पर फतह से कांग्रेस यह साबित करने में काफी हद तक सफल रही है कि हिंदी बेल्ट में अभी उसका वजूद है। लेकिन पिछले 29 सालों से यूपी की सियासत से बाहर कांग्रेस को यूपी के लोगों में अपनी जगह बनाने के लिए अभी काफी मशक्कत करनी है। इसी सोच के साथ कांग्रेस ने काशी के किसानों को जोड़ कर बड़ी छलांग लगाने का सपना देखा है। काशी जिसे आरएसएस का गढ माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां के सांसद है। ऐसे में इस काशी में शुक्रवार को आयोजित होने वाला किसान कांग्रेस की महापंचायत पर पूरे देश की निगाहें हैं। हर तरफ से लोग यह जानना चाहते हैं कि काशी के किसान क्या सोचते हैं। उनका मूड क्या है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर कांग्रेस काशी के किसानों को जोड़ पाने में सफल रहती है तो इसका संदेश दूर तलक जाएगा। लेकिन अगर यह किसान महापंचायत सफल नहीं होती तो उसका भी संदेश भावी राजनीतिक दिशा तय करेगा।
काशी इन दिनों सबसे चर्चित संसदीय क्षेत्र है, यहां हर दल की निगाह लगी है। वैसे भी आजादी के बाद से यह माना जाता है कि काशी देश की राजनीति को दिशा देती रही है। ऐसे में यहां किसान महापंचायत का आयोजन कर कांग्रेस ने दूर की कौड़ी चली है। कारण साफ है, ये महापंचायत ऐसे वक्त हो रहा है जब इसके कुछ ही दिनों पर प्रवासी भारतीय सम्मेले शुरू होगी। उस सम्मेलन में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति के अलवा बड़ी तादाद में केंद्रीय कैबिनेट बनारस में होगी। इस सम्मेलन के चलते प्रधानमंत्री किसानों को भी साधेंगे। वह पहले ही कुछ दौरों पर किसानों के लिए बहुत कुछ सौगात दे गए हैं। अब प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान भी कुछ सौगात मिल सकती है।
लेकिन यह भी तय है कि वाराणसी के किसान लंबे अरसे से सत्ता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। भूमि अधिग्रहण कानून के उल्लंघन का आरोप बार-बार लगाया जा रहा है। इसमें प्रधानमंत्री की विकास योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का मामला भी है, इसमें रिंग रोड फेज-2 का प्रकरण है तो लगभग ढाई दशक पहले के ट्रांसपोर्ट नगर योजना का मामला भी है। बनारस के किसान भूमि अधिग्रहण कानून के उल्लंघन की बात कर रहे हैं, वह कानून जिसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की देन माना जाता है। जिस कानून की बुनियाद भट्टापारसौल में रखी गई थी। ऐसे में ये महापंचायत कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन राजनीतिक हल्कों में जो सबसे अहम् मुद्दा विचारणीय है कि क्या इसके लिए बनारस कांग्रेस तैयार है? क्या बनारस कांग्रेस इस महापंचायत के मार्फत बीजेपी को जवाब दे पाएगी?
हालांकि इसके लिए बुधवार को बनारस कांग्रेस ने तैयारी बैठक भी की। इसमें बनारस के बडे नेताओं में महाज पूर्व विधायक अजय राय ही नजर आए। अजय राय जो पिछले साढ़े चार साल से हर मुद्दे पर बीजेपी और बनारस के सांसद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़ते नजर आ रहे हैं। इस तैयारी बैठक में भारतीय किसान कांग्रेस के राष्ट्रीय संयोजक, मध्य प्रदेश के देवेंद्र सिंह पटेल भी शामिल रहे। उन्होंने बनारस में किसान महापंचयत के आयोजन की वजह बताने की कोशिश भी की। बताया कि किसान कांग्रेस का मूल मकसद है हर किसान भाई के चेहरे पर खुशी लाना। मध्यप्रदेश में हमने पिछले पंद्रह वर्षों से तक़लीफ़ झेल रहे अपने किसान भाइयों के चेहरे पर खुशी लाने की कोशिश की। अगर हम इस निरंकुश सत्ता के खिलाफ मजबूती से नही लड़ेंगे तो हमारा वजूद खत्म हो जाएगा। हमे अपने देश को बचाने के लिए खड़ा होना होगा। हमें किसान कांग्रेस के सांगठनिक स्वरूप पर काम करना होगा। इस किसान संगठन की शुरुआत बनारस से होगी। उन्होंने कहा कि हम किसान भाइयों को स्वावलंबी बनाने की सोच रखते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सोच है कि हम छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी किसान समस्याओं को अपने वचनपत्र में शामिल करें, ताकि सरकार बनने पर हम उसे लागू कर सकें।
देवेंद्र सिंह पटेल के अलावा किसान कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम पांडेय भी किसानों के बीच एक पंचायत कर चुके हैं। एक अन्य राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुरेंद्र सोलंकी भी किसानों से मुखातिब हो चुके हैं। बनारस के राजातालब में तीन विकास खंड के किसानों, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधानों से वार्ता कर चुके हैं किसान कांग्रेस के नेता। बनारस की किसान महापंचायत के सिलसिले में प्रयागराज में भी बड़ा सम्मेलन आयोजित हो चुका है। इस किसान महापंचायत के लिए देवेंद्र पटेल के अलावा राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर बिहार से मुकेश बाबा, डॉ आरसी पांडेय, रवि जाधव बनारस पहुंच चुके हैं। ये सभी गांव-गांव घूम कर किसानों संग वार्ता करने में जुटे हैं। वैसे पूर्व सासंद डॉ राजेश मिश्रा, उत्तर प्रदेश किसान कांग्रेस के विनय शंकर राय मुन्ना, रामसुधार मिश्रा भी इन राष्ट्रीय स्तर के किसान नेताओं संग गांव-गांव, पुरवा-पुरवा घूम रहे हैं। अब शुक्रवार को नाना पटोले के आगमन की प्रतीक्षा है। पटोले जिन्हें कभी प्रधानमंत्री का नजदीकी माना जाता था, वो अब उन्हीं के संसदीय क्षेत्र से किसान हित में बड़ी लकीर खींचने आ रहे है। वह इस महापंचायत में फरवरी से शुरू होने वाली किसान सम्मान यात्रा की तारीख की घोषणा भी करेंगे। कहा तो यह जा रहा है कि बनारस के किसानों की मांग पर ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बनारस में किसान महापंचायत आयोजित करने का निर्देश दिया है।
लेकिन इस बीच यूनीटेक आवासीय परियोजना से पीड़ित किसानों ने बुधवार को कांग्रेस किसान महापंचायत के विरोध का ऐलान कर कांग्रेसी खेमें में हलचल पैदा कर दी है। इन किसानों के नेता दिनेश नारायण सिंह ने कहा है कि 2005-06 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार और प्रदेश की सपा सरकार ने नौ गांवों के किसानों की जमीन हड़पी है। तब जबरन भूमि अधिग्रहण का डर दिखाया गया था। पीड़ित किसानों के परिवार के नौजवानों को नौकरी का झांसा दिया गया था। सिंह कहते हैं कि अब फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस घड़ियाली आंसू बहा रही है। किसानों को फिर से छलने का काम किया जा रहा है। पिलखिनी गांव में सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में कहा गया कि 18 जनवरी को किसान, कांग्रेस किसान पंचायत का विरोध करेंगे। कांग्रेस सरकार में किसानों पर हुए अत्याचारों की पोल खोलेंगे। ऐसे में कांग्रेस की यह किसान महापंचायत को लेकर तरह-तरह की चर्चा शुरू हो गई है।
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