सरफ़राज़ अहमद
वाराणसी. लोकसभा चुनाव के दो महीने की लंबी भागदौड़ के बाद कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के नेतृत्व पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शनिवार को हुए सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस वर्किंग कमेटी) की बैठक में अपना इस्तीफी दे दिया। लेकिन सीडब्ल्यूसी ने उसे एक स्वर से खारिज कर दिया। लेकिन राहुल गांधी अपने इस्तीफे पर अड़े हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया कि अब गांधी परिवार से हट कर किसी को अध्यक्ष चुन लीजिए। इसके बाद से समूची कांग्रेस में सन्नाटा है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने का भी विरोध कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन होगा नया अध्य़क्ष।
फिलहाल तो इस सवाल पर कांग्रेसी मौन हैं। उनका कहना है कि गांधी परिवार के अलावा और कोई ऐसा नहीं जो कांग्रेस को एकजुट रख सके। ऐसा कोई करिश्माई चेहरा ही नहीं है जो 'हिरो' के रूप में पार्टी को चला सके। दरअसल देश की जनता ही नहीं, देश की बड़ी पार्टियों के बीच भी एक करिश्माई चेहरे की जरूरत है जो पूरी पार्टी को एकजुट रख सके। उसके निर्णय को सभी एक सिरे से स्वीकार कर सकें। अगर बात बीजेपी की ही की जाए तो फिलहाल यानी 2014 से अब तक नरेंद्र मोदी ही हैं जिनके नाम पर पूरी पार्टी चल रही है। वह बीजेपी के पर्याय बन गए हैं। इससे पहले बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी थे। हालांकि उनके साथ लाल कृष्ण आडवाणी भी थे। लेकिन चेहरा वाजपेयी का ही हुआ करता था।
ठीक इसी तरह से कभी कांग्रेस में जवाहर लाल नेहरू फिर इंदिरा गांधी का नाम था। समय-समय पर सवाल उठता रहा, हू ऑफ्टर नहेरू, हू ऑफ्टर इंदिरा। घूम फिर कर नेहरू गांधी परिवार ही कंग्रेस के खेवनहार रहे। कुछ एक मौके आए भी जब नेहरू गांधी परिवार से इतर लोगों को पार्टी का नेतृत्व सौंपा गया लेकिन तब पार्टी बिखर गई। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद के सवाल पर कांग्रेसी कहते हैं कि सीता राम केशरी भी तो अध्यक्ष बनाए गए थे जब कांग्रेस बिखरने लगी थी। उनका सवाल है कि क्या गुजरात के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को संभाल लेंगे या पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह। हालांकि कुछ लोग अशोक गहलौत के नाम पर थोड़ा रुकते हैं और कहते हैं कि वह पिछड़ों के अच्छे नेता हैं। नरेंद्र मोदी का जवाब हो सकते हैं। उनकी छवि भी अच्छी है। लेकिन हालिया चुनाव परिणाम देखा जाए तो राजस्थान में वह कांग्रेस को वो सफलता नहीं दिला पाए जिसकी उनसे अपेक्षा की गई थी। ऐसे में तो फिर वही सवाल खड़ा होगा कि जिताऊ कप्तान कौन होगा।
ऐसे में कांग्रेसियों का कहना है कि एक-दो दिन में राहुल गांधी को मना लिया जाएगा। ठीक उसी तरह जिस तरह से सोनिया गांधी को मना कर सक्रिय राजनीति में लाया गया था। एआईसीसी मेंबर वरिष्ठ कांग्रेस नेता अनिल श्रीवास्तव कहते हैं कि राहुल गांधी का कोई विकल्प नहीं है। गांधी परिवार का कोई विकल्प नहीं है। इस परिवार से अलग ऐसा कोई चेहरा है ही नहीं जो पार्टी को एक सूत्र में पिरो कर रख सके। वह कहते हैं कि राहुल गांधी बेहद सेंसटिव व इमोशनल व्यक्ति है। इतनी मेहनत के बाद भी अपेक्षित परिणाम न आने से वह काफी आहत हैं। यही वजह है कि उन्होंने इस्तीफा दिया और उस पर अड़े हैं। श्रीवास्तव ने उम्मीद जताई कि एक-दो दिन में मामला सलट जाएगा। अगर वाकई राहुल नहीं मानते हैं तो एक ही विकल्प है कि फिर से सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया जाए। राहुल गांधी पीछे से काम करें।
बनारस कांग्रेस प्रचार समिति के प्रभारी अनिल श्रीवास्तव अन्नू का कहना है कि अव्वल तो राहुल गांधी का कोई विकल्प नहीं है। फिर इस वक्त नेतृत्व परिवर्तन का सवाल ही पैदा नहीं होता। यह तो बीजेपी, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जीत होगी। वो यही तो चाहते हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद से हट जाएं। ये आत्मघाती कदम होगा। अन्नू कहते हैं कि राहुल को पूर्ण अधिकार के साथ मैदान में आना चाहिए। पार्टी में ऊपर से नीचे तक आमूल चूल परिवर्तन करना चाहिए। वैसे वर्किंग कमेटी ने आमूलचूल परिवर्तन की बात स्वीकार भी कर ली है। लेकिन इस पर जल्दी से अमल होना चाहिए।
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