सरफ़राज़ अहमद
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सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार भी हो गयी फेल, लोकसभा चुनाव लडऩे का भी किया है ऐलान
वाराणसी. यूपी के बाहुबलियों की चर्चा फिर शुरू हो गयी है। लोकसभा चुनाव 2019 में बाहुबली किस पार्टी से चुनाव लडऩे वाले हैं। इसको लेकर कयासे लगने लगे हैं। यूपी में बड़े बाहुबलियों का नाम अब जरायम की दुनिया को लेकर नहीं आता है बल्कि राजनीति बयानबाजी को लेकर बाहुबली चर्चा में रहने लगे हैं इसी बीच एक बाहुबली ने अन्य सभी को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया है। इस बाहुबली का डंका एक बार फिर से जरायम की दुनिया में बजने लगा है।
देवरिया जेल कांड के बाद बाहुबली अतीक अहमद का नाम सबसे आगे हो गया है। इलाहाबाद में एक कॉलेज में मारपीट प्रकरण से लेकर देवरिया जेल कांड से साबित होता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार में बाहुबली अतीक की ताकत कम नहीं हुई है बल्कि बढ़ती जा रही है। देवरिया जेल में जिस तरह से प्रॉपटी डीलर की चमड़ी उधेड़ी गयी है उसके बाद से जरायम की दुनिया में एक बार फिर अतीक काड का बजने लगा है। बरेली जेल में जाने के बाद भी अतीक अहमद का जलवा कम नहीं हुआ है उसके खौफ से जेल अधिकारी सहमे हुए हैं।
राजनीति में सक्रिय है यह बाहुबली
कुंडा के विधायक राजा भैया, ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्रा, जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह, माफिया से माननीय बने बृजेश सिंह, विधायक मुख्तार अंसारी व सांसद बृजभूषण शरण सिंह उन बाहुबलियों में से है जिनकी सत्ता यूपी में चलती थी लेकिन काफी समय से इन बाहुबलियों का नाम जरायम की दुनिया में नहीं आता है। राजनीति में अधिक सक्रियता दिखाने वाले इन बाहुबलियों ने चुनाव लडऩे व जीतने पर ही अपना सारा ध्यान लगाया हुआ है लेकिन अतीक अहमद ऐसे बाहुबली बनते जा रहे हैं जिन पर लगातार आरोप लगते रहते हैं।
फूलपुर के पूर्व सांसद है अतीक अहमद
अतीक अहमद की मनपसंद सीट फूलपुर है। जहां से अतीक चुनाव जीत भी चुके हैं। अतीक अहमद के पास अधिक विकल्प नहीं बचा है। अतीक ने जेल से ही चुनाव लडऩे की तैयारी की है। फूलपुर संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में अतीक अहमद को करारी शिकस्त मिली थी। कभी मुलायम सिंह यादव के खास माने जाने वाले अतीक अहमद का अखिलेश यादव व मायावती से अच्छे संबंध नहीं है ऐसे में अतीक को महागठबंधन से टिकट नहीं मिल सकता है। बीजेपी व कांग्रेस भी टिकट नहीं देगी। अतीक के पास दो ही विकल्प बचे हुए हैं या तो निर्दल ही चुनाव लड़े। या फिर शिवपाल यादव की पार्टी का प्रत्याशी बन कर लोकसभा चुनाव २०१९ में अपनी वैतरणी पार कराये।
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सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार भी हो गयी फेल, लोकसभा चुनाव लडऩे का भी किया है ऐलान
वाराणसी. यूपी के बाहुबलियों की चर्चा फिर शुरू हो गयी है। लोकसभा चुनाव 2019 में बाहुबली किस पार्टी से चुनाव लडऩे वाले हैं। इसको लेकर कयासे लगने लगे हैं। यूपी में बड़े बाहुबलियों का नाम अब जरायम की दुनिया को लेकर नहीं आता है बल्कि राजनीति बयानबाजी को लेकर बाहुबली चर्चा में रहने लगे हैं इसी बीच एक बाहुबली ने अन्य सभी को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया है। इस बाहुबली का डंका एक बार फिर से जरायम की दुनिया में बजने लगा है।
देवरिया जेल कांड के बाद बाहुबली अतीक अहमद का नाम सबसे आगे हो गया है। इलाहाबाद में एक कॉलेज में मारपीट प्रकरण से लेकर देवरिया जेल कांड से साबित होता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार में बाहुबली अतीक की ताकत कम नहीं हुई है बल्कि बढ़ती जा रही है। देवरिया जेल में जिस तरह से प्रॉपटी डीलर की चमड़ी उधेड़ी गयी है उसके बाद से जरायम की दुनिया में एक बार फिर अतीक काड का बजने लगा है। बरेली जेल में जाने के बाद भी अतीक अहमद का जलवा कम नहीं हुआ है उसके खौफ से जेल अधिकारी सहमे हुए हैं।
राजनीति में सक्रिय है यह बाहुबली
कुंडा के विधायक राजा भैया, ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्रा, जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह, माफिया से माननीय बने बृजेश सिंह, विधायक मुख्तार अंसारी व सांसद बृजभूषण शरण सिंह उन बाहुबलियों में से है जिनकी सत्ता यूपी में चलती थी लेकिन काफी समय से इन बाहुबलियों का नाम जरायम की दुनिया में नहीं आता है। राजनीति में अधिक सक्रियता दिखाने वाले इन बाहुबलियों ने चुनाव लडऩे व जीतने पर ही अपना सारा ध्यान लगाया हुआ है लेकिन अतीक अहमद ऐसे बाहुबली बनते जा रहे हैं जिन पर लगातार आरोप लगते रहते हैं।
फूलपुर के पूर्व सांसद है अतीक अहमद
अतीक अहमद की मनपसंद सीट फूलपुर है। जहां से अतीक चुनाव जीत भी चुके हैं। अतीक अहमद के पास अधिक विकल्प नहीं बचा है। अतीक ने जेल से ही चुनाव लडऩे की तैयारी की है। फूलपुर संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में अतीक अहमद को करारी शिकस्त मिली थी। कभी मुलायम सिंह यादव के खास माने जाने वाले अतीक अहमद का अखिलेश यादव व मायावती से अच्छे संबंध नहीं है ऐसे में अतीक को महागठबंधन से टिकट नहीं मिल सकता है। बीजेपी व कांग्रेस भी टिकट नहीं देगी। अतीक के पास दो ही विकल्प बचे हुए हैं या तो निर्दल ही चुनाव लड़े। या फिर शिवपाल यादव की पार्टी का प्रत्याशी बन कर लोकसभा चुनाव २०१९ में अपनी वैतरणी पार कराये।
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