सरफ़राज़ अहमद
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कल रात थका हारा घर पहुंचा। रोज की तरह ठंडा खाना खाने के बाद बिस्तर पर पड़ा। न जाने कब आंखें लग गई। गहरी नींद की आगोश में पहुंचने के बाद एक सपना देखा। जिसे बिना बयान किए रुक नहीं पा रहा हूं। मैंने जो देखा-सुना वह महज सपना भर है। सत्यता से उसका कोई लेना-देना नहीं। लिहाजा इसे सत्यता से न जोड़ते हुए सपने की तरह आनंद लें। रात सोने के बाद मेरे आंखों के सामने जो दृश्य चल रहा था वह कुछ इस तरह है, करीब पांच साल पहले एक रात एक मां बेटे के कमरे में रोते हुए आई और कहा- बेटा सत्ता जहर है। कुछ समय सात्विक सुरम्य सन्तों की नगरी कहे जाने वाले बैंकॉक सिटी में तपस्या-विपश्यना करके बेटे को दिव्यज्ञान कि प्राप्ति हुई कि अकेले मां को सत्ता का जहर नहीं पीने देना है। मां सत्ता का जहर पी पीकर बीमार हो जाती हैं। इसलिए बार-बार अज्ञात बीमारी के चपेट में आ जाती हैं।
और एक काबिल बेटे को यह कैसे बर्दाश्त होता कि मां सत्ता रूपी जहर पिये और बेटा यह सब सहन करे।लिहाजा बेटे ने भी यह तय कर लिया कि माता के हाथों से राष्ट्रीय अध्यक्ष रूपी सत्ता के जहर का प्याला अपने हाथों में ले लिया जाए। बेटे की मंशा जानकार मां भावुक हो गयीं, बोलीं अरे बेटा यह पुस्तैनी विष प्याला हमारे खानदान को मिला है। हम लोग लगातार इसको पीते आ रहे हैं। लोग हमारी मजबूरी समझें, विरासत समझें या जिद। इस सत्ता रूपी विष प्याले जिसे नासमझ लोग राष्ट्रीय अध्यक्ष पद कहते हैं किसी को दे नहीं सकते। क्योंकि हम नहीं चाहते कि इस विष प्याले को पार्टी के दूसरे लोग मुंह लगाकर मरे।
खैर ले मुहं खोल आ कर के इस विष प्याले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के जहर को घूंट-घुंट कर पीता जा। मां के इन बातों से बेटे ने भावविभोर होकर कहा कि मां इस जहर के साथ ही सत्ता के शीर्ष जहर प्रधानमंत्री को भी पाने की जी तोड़ कोशिश करूंगा। क्योंकि परिवार में उस जहर को पापा और दादी पी चुकी हैं। और दो बार जबरन आप मौन अंकल को भी पिला दीं हैं। अब मैं पिऊंगा। सत्ता के जहर का प्याला हाथ आते ही बेटा उसे हाथ में लिए आगे ही बढ़ा कि अचानक प्याला छलका और सत्ता रूपी जहर के तीन बून्द छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश में जा गिरीं। ये बूंदों को भूपेश, अघेल, गललोत, जमलनाथ के मुहं में गिर गईं, इन तीनों लोगों को सत्ता के जहर के कड़वेपन का अहसास हुआ। तो बेटा खुशी से फुले न समाएं। जाकर तुरन्त मां से बोले मां यह जहर तो मजेदार है।
बेटे की बात सुनकर डांटते हुए मां बोलीं चुपकर पगले। इसलिए तुझे नहीं बता रही थी सत्ता के जहर के बारे में। अच्छा होता कि मैं अकेले ही इस जहर को पी रही होती, सुन इस जहर को पीना तो जरूर है, मगर मुंह तुझे कड़वा सा ही बनाना है। और अब इसकी कुछ बूंदे यूपी में छिड़क।
और हां पता कर तेरी बहन कहां है ? सत्ता के जहर उसे भी दो घूंट पिला, अच्छा कह के बेटे ने बहन को अपने नोकिया इग्यारह सौ से फोन मिलाया।
उधर किसान पति के के साथ खेतों में चना बो रहीं तभी बहन का नोकिया इक्यावन दस बजता है ।
बेटा- हेलो बहन कैसी हो ? मां ने तुम्हे भी सत्ता का जहर पिलाने को बोला है।
इधर से बहन- हेलो भईया तू तो जानता है न तेरे जीजा को खेती-गृहस्थी से फुरसत ही नहीं है। चार बीघा आलू बोए हैं। उसे पीसी ज्वेलर्स को देना है, और मैंने चने बोए हैं, उसे हीरा व्यापारी को बहुत जरूरी देना है। मुझे नहीं पीना सत्ता का जहर।
बेटा- अरे पगली सत्ता का आकर जहर पिले। यूपी में जीजा जी को और ढेर सारा खेत मिल जाएगा। तू वहां किसान बन जाएगी। हो सकता है एमपी राजस्थान की तरह वहां भी सत्ता का जहर काम कर जाए।
बहन- अच्छा ठीक है भैया आती हूं। शाम को रोडवेज पकड़ के आजकल लोकल टीरेन में संड़ाघ बहुत गंधात है।
और बहन के पहुंचते ही बेटे ने सत्ता के जहर का प्याला बहन के मुंह लगाते हुए महासचिव लेबल तक पिला दिया। और इसी के साथ घर वाले आकर चिल्लाने लगे मोहल्ले में पानी नहीं आ रहा है। मेरी नींद खुली। मैं भी सोच में डूबा था कि सपने में क्या-क्या देख लिया।
नोट- सपने में लिखे गए सभी पात्र काल्पनिक है। अगर इनसे किसी व्यक्ति या घटना की समानता पाई जाती है तो उसे मात्र संयोग माना जाएगा।
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