2/16/2024

नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच से नमकीन दलदल का वीरान क्षेत्र हुआ गुलजार

नरेंद्र मोदी की दूरगामी सोच से नमकीन दलदल का वीरान क्षेत्र हुआ गुलजार 

वीरान "रण उत्सव" का दीदार करने के लिए हजारों पर्यटक पहुंचते है हर रोज 

 गुजरात के कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ वीरान टापू  एक नमकीन दलदल का वीरान क्षेत्र है।जो लगभग 23,300 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा हिस्सा है।  जानकारों का मानना है की धरती मे कम्पन्न {भूकंप} के कारण संभवतः अपने मौलिक तल को ऊपर उभर आया है और परिणाम स्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है।इतिहासकारो का कहना है सिकन्दर महान्‌ के समय यह नौगम्य झील था।

नाम "रण" हिन्दी शब्द से आता है (रण) अर्थ "रेगिस्तान" है।

उत्तरी "रण" लगभग 257 किमी में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,178 वर्ग किमी है।कच्छ के "रन" की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की लगती है।
जब हम कच्छ जिला के "धोरडो" मे बनी टेंट सिटी मे पहुँचे तो हमें पता चला की "धोरडो "गाँव के सरपंच मिया हुसैन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त है,तो हम लोग "मिया हुसैन" सरपंच "धोरडो" से मुलाक़ात करने पहुँचे तो उन्होंने ने बताया की "धोरडो" गाँव के सरपंच मेरे पिता और नरेंद्र मोदी अच्छे दोस्त थे। नरेंद्र मोदी जब प्रचारक के रूप मे हमारे गांव मे आया करते थे तब उन्होंने ने मेरे पिता से वादा किया था।कहा था जब मै कुछ लायक बन जाऊंगा तो "धोरडो" के लिए कुछ करूँगा। आप सोच लीजिये की जिस "रण" (रेगिस्तान) जिसको कोई जनता नहीं था। उसको नरेंद्र मोदी की नजरों ने कैसे पहचना लिया की यहां तो हजारों की भीड़ लग सकती है।ये कोई साधारण इंसान के बस की बात नहीं है।जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप के प्रदेश की कमान संभाली तो 2005 मे अपनी टीम को अपना विजन बताकर "रण" (रेगिस्तान) के दौरे पर रवाना किया। लेकिन जिस दोस्त को वादा करके आये थे, वे तो परलोक सिधार गए थे।तब अपने पिता की कुर्सी पर उनका बेटा मिया हुसैन बैठे थे। उसके बाद "रण" मे शुरू हुआ नरेंद्र मोदी की सोच के अनुसार काम जो "रण उत्सव" के नाम से जाना जाता है। पहले यह कार्यक्रम तीन दिन के लिए शुरू हुआ था। आज तीन महीने ज्यादा चलने लगा है। इस "रण उत्सव" को देखने के लिए देश विदेश से हजारों पर्यटक हर रोज पहुँचते है। धोरडो "रण उत्सव" आने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा ऑनलाइन बुकिंग किया जाता है। जहाँ पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटकों को पूरी व्यवस्था दी जाती है। "रण" मे लोगों को रहने के लिए टेंट सिटी का निर्माण किया गया है जो किसी होटल से कम नहीं है। 
 मार्च से अक्टूबर महीने तक यह क्षेत्र दुर्गम हो जाता है।जिसमे समुन्द्र का पानी भरा रहता है। जानकारों का कहना है की सन्‌ 1819 ई. के भूकंप में उत्तरी "रन" का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं।जब सूर्य ढलने लगता है तो "रण" अपना रंग बार बार बदलता है। मून की रात मे पूरा "रण" सफेद रेगिस्तान हो जाता है जो एक सपने से कम नहीं लगता है। यह दृश्य पर्यटकों को बहुत ही रोमांचित करता है।
पर्यटकों के लिए "धोरडो" से 88 किलोमीटर की दुरी पर "धोलावीरा" में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर मिलते है।यह उस समय की सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था।

इस पुरातत्व स्थल को "धोलावीरा" गांव के निवासी शंभूदान गढ़वी खेती किया करते थे जुताई के दौरान कुछ न कुछ मिल ही जाता, जिन्होंने इस स्थान पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्षों तक प्रयास किये।भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों साल के कुछ महीने ही बहती हैं।   "धोलावीरा" पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था। इस हड़प्पा कालीन शहर "धोलावीरा" को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में 2021 (चीन में संपन्न यूनेस्को की ऑनलाइन बैठक में) शामिल किया गया है। यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है।
"धोरडो" से "धोलबीरा" के बीच मे पड़ने वाले एक मार्ग जिसे 'रोड टू हेवन' कहा जाता है। गुजरात का कच्छ क्षेत्र भोगोलिक विविधता के लिए जाना जाता है। यहां के सफेद रेगिस्तान को देखने सैलानियों का हूजूम आता है। यहीं पर पछम और खादिर के बीच सफेद रेगिस्तान को काटने वाली एक सड़क अब अपने आप में एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरकर सामने आ रही है। इस सड़क के दोनों ओर विशाल "रण"(रेगिस्तान) है। इस विशाल रेगिस्तान से होकर गुजरने पर आपको स्वर्ग सी अनुभूति होती है। इस सड़क पर घूमते समय एक घूमक्कड़ी ब्लागर ने लिखा 'रोड टू हेवन' तब से इस रोड को'रोड टू हेवन' कहा जाता है।

पीएम मोदी ने भूकंप मे जान गवां चुके लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए भुज मे "स्मृति वन स्मारक" का निर्माण करवाया 

26 जनवरी सन,2001 का दिन गुजरात भूकंप, भारत के 51 वें गणतंत्र दिवस  की तैयारी चल रही थी कि सुबह 08:46 बजे थे भूकंप के झाटके पूरी धरती हिलने लगी। यह भूकंप 2 मिनट से अधिक समय तक चलता रहा । जिसकी तीब्रता 7.7 मापी गई।जिसे भुज भूकंप के नाम से भी जाना जाता है। इसका केंद्र भारत के गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में चबारी गांव के लगभग 9 किमी दक्षिण-दक्षिण पश्चिम में था।इस विनाशकारी भूकंप मे हजारों निर्दोषों ने अपनी जान गवां दी। इस आपदा मे जान गवाने वालों की याद मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि देने के लिए "स्मृति वन स्मारक" का निर्माण करवाया है। 

'स्मृति वन स्मारक' गुजरात के भुज क्षेत्र में मौजूद है। "स्मृति वन स्मारक" 470 एकड़ क्षेत्र में बनाया गया है।
स्मृति वन मेमोरियल में अत्याधुनिक स्मृति वन भूकंप संग्रहालय है जिसे सात विषयों पर आधारित सात खंडों में विभाजित किया गया है जिसमे पुनर्जन्म, पुनः खोज, पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण, पुनर्विचार, पुनः जीना और नवीनीकरण आदि को शामिल किया गया है।
 इसमें लगभग 13,000 लोगों के नाम हैं, जिन्होंने भूकंप के दौरान अपनी जान गंवा दी थी।जिसमे पहला खंड पृथ्वी के विकास और हर समय इससे उबरने की क्षमता को दर्शाता है।यह रिडिस्कवर थीम पर आधारित है।दूसरा खंड गुजरात की स्थलाकृति और विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को दर्शाता है।तीसरा खंड भूकंप के तत्काल बाद के परिणामों को दर्शाता है, जिसमें दीर्घाएँ व्यक्तियों के साथ-साथ संगठनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर राहत प्रयासों को संबोधित करता हैं।चौथा ब्लॉक गुजरात की पुनर्निर्माण पहल और 2001 के भूकंप के बाद की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करता है।पांचवां खंड आगंतुकों को विभिन्न प्रकार की आपदाओं और क्षति और जानमाल के नुकसान को कम करने के लिए भविष्य की तैयारियों के बारे में सोचने और सीखने के लिए प्रेरित करता है।छठे खंड में एक 5डी सिम्युलेटर है जिसका उपयोग करके आगंतुक भूकंप के अनुभव को फिर से महसूस कर सकते हैं और इस पैमाने पर किसी घटना की जमीनी हकीकत जान सकते हैं।सातवां और अंतिम खंड लोगों को स्मरण के लिए एक स्थान प्रदान करता है जहां पर खोई हुई आत्माओं को श्रद्धांजलि दिया जाता है।
आज हजारों लोग "स्मृति वन स्मारक"
पहुंच कर भूकंप की वजह से काल के गाल समा चुके लोगों को श्रद्धांजलि देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करते नहीं थकते की आज प्रधानमंत्री की वजह से हम सब श्रद्धांजलि दे पा रहे है और सब अपने आप को धन्य मान रहे है।
आर.एम.श्रीवास्तव / डी.के.सिंह (पत्रकार)

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